देश और उत्तर प्रदेश की भाजपा नीत सरकारों ने युवाओं को रोजगार के खूब सब्जबाग दिखाये.. समय बीतने के साथ इन वायदों की एक-एक कर कलई खुल रही है। कोर्ट-कचहरी के चक्कर में उलझकर नौजवानों की नौकरी की उम्मीदें दम तोड़ने लगी हैं।
सत्ता में बैठे नुमाइंदों से आज नौजवान पूछ रहे हैं कि अगर आप हमारे घावों पर मरहम नहीं लगा सकते तो कम से कम नमक तो मत ही छिड़किये।

शुक्रवार को लखनऊ में जो कुछ हुआ वह हैरान कर देने वाला है। अपनी मांगों को लेकर राजधानी में प्रदर्शन कर रहे सहायक शिक्षक भर्ती के अभ्यर्थियों को जिस तरह से पुलिस के जवानों ने दौड़ा-दौड़ा कर पीटा वह सत्ता में बैठी असंवेदनशील सरकार और पुलिसिया तंत्र की कहानी को खुद-ब-खुद बयां करने के लिए काफी है। लाठियां चटकाकर दर्जन भर से अधिक युवाओं के सिर फोड़ दिये गये। कई लड़कियों को बुरी तरह पीटा गया। खून से लथपथ नौजवानों के सिर और चेहरे देख कोई भी द्रवित हो उठेगा लेकिन सरकार है कि पसीजती ही नही। न तो कोई जिम्मेदार इन प्रदर्शनकारियों से बात करने को तैयार होता है और न ही इनकी समस्या को दूर करने को कोई ठोस तरीका लेकर सामने आता है। मानों सब कान में तेल डालकर सोये हुए हैं।

क्या लोकतंत्र में नौकरी मांगना और बात न सुनी जाय तो विरोध-प्रदर्शन करना गुनाह है? और क्या इसकी सजा नौजवानों का सिर फोड़ना है?
आये दिन दिल्ली में सीजीओ काम्पलेक्स के बाहर नौजवान देश भर से जुटते हैं और कोशिश करते हैं कि सरकारी नुमाइंदों के कानों पर जूं रेंगे लेकिन हर बार लाठी-डंडों के दम पर इनकी आवाज को अनसुनी कर दी जाती है।
किसी भी देश का भविष्य वहां के नौजवान होते हैं लेकिन इनके सपने को हर बार कुचलने का काम किया जाता है। इनके सपनों को पंख लगे इससे पहली ही इनके पंखों को तोड़ दिया जा रहा है।
क्या कभी किसी ने सोचा कि ये नौजवान किस तरह गरीबी में पढ़कर एक अदद नौकरी की तलाश करते हैं? कैसे इन्हें कोर्ट-कचहरी के चक्कर में उलझा दिया जाता है और ये अपना पेट काट महंगे वकीलों की फीस का इंतजाम कर केस लड़ते हैं सिर्फ इस आस में कि इन्हें पेट पालने का एक रास्ता मिल जाये।
बड़ा सवाल.. आखिर कब बदलेगी ये तस्वीर?